नमन पिता को कीजिए- दोहा छंद
कहें जनक पालक उन्हें, जिन चरणों में धाम।
पिता वचन का मान रख, वनगामी श्रीराम।।०१।।
कदम बढ़ाना अंक दे, जिसका है शुभ काम।
नमन पिता को कीजिए, वही बैकुंठ धाम।।०२।।
कंधा बिठाकर जब चले, खुशियाँ मिली तमाम।
बचपन में राजा बनें, आज नहीं वह दाम।।०३।।
कहाँ शब्द सामर्थ्य है, कह पाए अविराम।
जिनकी छाया में सदा, सफल हुआ हर काम।।०४।।
सुपुत्र अपने कर्म से, करता रौशन नाम।
चौड़ा सीना तब लिए, चलते अपने ग्राम।।०५।।
पुत्र मोह धारण किए, पिता करें हर काम।
भला सदा सोंचा करें, जैसे दशरथ राम।।०६।।
दूर कभी जाना नहीं, छोड़ पिता का धाम।
नहीं चैन मिलता कहीं, जीवन है संग्राम।।०७।।
पिता हमारा मान है, उनसे अपना नाम।
वृद्ध हुए हो पिता तो, हर्षित कर लो थाम।।०८।।
सिर पर साया पिता का, हरता हर संताप।
किए अनादर जो कभी, बिगड़े सारा काम।।०९।।
नहीं रहा चिंता कभी, सुखमय आठों याम।
पिता चरण पाठक सदा, पाएँ चारों धाम।।१०।।
वचन पिता की मानिए, जैसे कोई मंत्र।
चरण बैकुंठ द्वार सम, गहिए शुभ यह तंत्र।।११।।
मात-पिता ने जन्म दे, दिखलाया संसार।
अपने साये में दिया, सबल रूप आकार।।१२।।
दूर किया दुख दर्द को, सहकर सर्व प्रहार।
सुखी संतान के लिए, करता प्रभु मनुहार।।१३।।
अपना सबकुछ भूल कर, बच्चों को दें प्यार।
भटक रहा है वह पिता, रोटी को दो-चार।।१४।।
जिनसे यह पहचान है, वे पूरा संसार।
उसी पिता का अब मने, एक दिवस त्यौहार।।१५।।
बच्चे रमते काम में, करके जिसे किनार।
दिवस पिता का मन रहा, कैसा यह संसार।।१६।।
वृद्धाश्रम है चल रहा, नहीं पिता हैं द्वार।
वैसे बच्चे कर रहे, आज उन्हें सत्कार।।१७।।
यहाँ- वहाँ हैं पल रहे, जिनका था घर-बार।
भूखा हरपल स्नेह का, मिलें आज उपहार।।१८।।
लुढक रहे फुटबॉल सा, मिलता है दुत्कार।
मात-पिता दुर्गति सहे, जब सुत पालनहार।।१९।।
नहीं चुका सकते कभी, पितृ ऋणता का भार।
उम्र वही आती तभी, बदले हर व्यवहार।।२०।।
चरण वंदना कीजिए, खूब दीजिए प्यार।
एक दिवस पाठक तजे, हर-दिन से उद्धार।।२१।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
