पड़ती गर्मी प्रचंड है – लावणी छंद गीत
ताल, तलैया, सरवर सूखा, भू दिखता खंड-खंड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, गर्मी बड़ा प्रचंड है।।
झुलस गया है बाग, बगीचा, नहीं कहीं हरियाली है।
फूल बिना उपवन अब सूना, कहता हरपल माली है।।
काट चुके जो हम वृक्षों को, मिलता उसी का दंड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, पड़ती गर्मी प्रचंड है।।०१।।
गर्म हवा के झोंके बहते, नहीं शीतलता हम पाते।
तन में फोरे हो जाते हैं, ज्यों हम बाहर को जाते।।
जबतक जल से तन भिंगोए, तभी तक लगता ठंड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, पड़ती गर्मी प्रचंड है।।०२।।
तन से खूब पसीना बहता, कपड़े लथपथ हो जाते।
छाँव देखकर बैठे रहते, काम नहीं कोई भाते।।
अर्धनग्न सा घूमा करता, लगते जैसे उदंड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, पड़ती गर्मी प्रचंड है।।०३।।
साधन की भरमार पड़ी है, फिर भी मिलता कब राहत।
मार प्रकृति की जब पड़ती है, होते सब के सब आहत।।
लगता जैसे बड़े क्रोध में, आयें निकल मार्तण्ड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, पड़ती गर्मी प्रचंड है।।०४।।
भूल हुई है क्षमा करो अब, जीवित जो रह पाएँगे।
त्राहि-त्राहि करता हूॅं दिनकर, तरुवर सदा लगाएँगे।।
फूल रही साँसें सबकी अब, जरा भी नहीं घमंड है।
प्यासा पंछी खोज रहा जल, पड़ती गर्मी प्रचंड है।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
