प्रतीक्षा-जय कृष्णा पासवान

Jaykrishna

आंखों की रोशनी भी,
जुगनू बन-कर देखता रहा ।
समंदर से मोती भी गोता
लगाकर निकालता रहा ।।
कोई फरियाद नहीं है,
खुदा से मेरे ‘मगर’ उनकी –
परछाइयों को भी मैं ,
निहारता रहा।।
आंखों की रोशनी भी जुगनू
बनकर देखता रहा……।।
उस लम्हा से दीदार जब,
उस तस्वीर की हुई।
मानो दरिया की खुशी,
सागर में बह रही हो ।।
लहरें भी साक्ष्य बनकर,
कश्तियां संग इतराते रहा।
समंदर से मोती भी गोता
लगाकर निकालता रहा…।।
क्या मंजर था उस वक्त ,
हर-ऐक पल के इन्तज़ार का।
आंखें तो थक चुकी थी,
राहों में राही के खुमार का।।
पुष्प वर्षा के घना बादल,
जल के बिन तरसते रहा।
आंखों की रोशनी भी जुगनू बन कर देखता रहा……।।
वो तो करुणा की धनी है मानो ,
हिय-प्रेम की सागर है जानो ।
ममता जैसी छांव है उनका,
अम्बर जैसा स्नेह है उनका।।
फूल के वादियों की तरह,
घर और आंगन महकता रहा।
आंखों की रोशनी भी जुगनू बन कर देखता रहा।
समंदर से मोती भी गोता लगाकर निकालता रहा।।


जय कृष्णा पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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