प्रभाती पुष्प – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

मनहरण घनाक्षरी


वर्षा ऋतु आने पर,
नदी नाले भरे जाते,
आनंद से रहती है
मछली तालाब में।

लोगों की नज़र बीच,
छिपाने से छिपे नहीं,
असली छुपाते लोग
चेहरा नक़ाब में?

युवक आनंद लेते,
जीवन स्वच्छंद जीते,
मजा नहीं मिले जब
हड्डी हो कबाब में।

मदिरा चरस भांग,
डँसता है बन नाग,
दौलत से ज्यादा नहीं
नशा है शराब में।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply