प्रेम दिव्य अनुभूति परम है- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

प्रेम दिव्य अनुभूति परम है
आओ हम विश्वास बढ़ाएँ।
प्रेम मग्न हों प्रभु को भजकर,
अंतर्मन नव भाव जगाएँ।

प्रेम पंथ पर पग जो रखते
बन जाती है नई कहानी।
निश्छल प्रेमिल बात न पूछो,
उसकी तो है नई रवानी।।
स्नेहिल भाषा सौम्य अनूठी,
जीवन का आधार बनाएँ।
प्रेम दिव्य ————- बढ़ाएँ।

दीप प्रेम का सतत् जलाकर
राग-द्वेष को दूर भगाते।
मन का आँगन फूल खिलाकर,
नई सुखद खुशबू फैलाते।
सब जीवों में प्रीति-नीति की,
एक नवल रसधार बहाएँ।
प्रेम दिव्य ———– बढ़ाएँ।

मातु पिता से नेह लगाना
जीव मात्र से प्यार जताना।
शुभाशीष गुरुवर का पाकर,
प्रतिदिन आगे बढ़ते जाना।
मातृभूमि से लगन लगाकर,
भारत भू को स्वर्ग बनाएँ।
प्रेम दिव्य —————- बढ़ाएँ।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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