बाली रे उमरिया – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra Prasad Ravi

प्रभाती पुष्प
मनहरण घनाक्षरी छंद


बाली रे उमरिया
🌹🌹🙏🙏🌹🌹
एक दिन राधा रानी
भरने को गई पानी,
भूल बस चली गई, गोकुल नगरिया।

देख के सुंदर गांव
ठिठक गई थी पांव,
जाने कैसे मिल गया, सांवला सांवरिया।

देख सुध बुध कोई
रात भर नहीं सोई,
दिल में जो गड़ गई, तिरछी नजरिया।

अजीब उमंग दिखे
मन में तरंगे उठे,
राम जाने कैसी आई, बाली रे उमरिया।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि

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