सूरज ज्योति का है आगार
उजियारे का सौम्य नगर।
किरणें इसकी छू लें धरती,
हरियाली भर जाए घर।।
नीला नभ फैला है कितना,
आँखों से यह मापा ना जाए।
तारे लिखे दीप सरीखे इसमें,
जगमग-जगमग राह दिखाए।।
नीहारिका के घूँघट मोती,
आकाशगंगा झूले मौजी।
सपनों जैसे दृश्य अनोखे,
झिलमिल ज्योति करें मनमौजी।।
ध्रुवतारा लगता प्रहरी जैसा,
अडिग अटल नभ में समाया।
नाविक, राही, सबको राह दे,
हर युग में पथप्रदर्शक आया।।
चंदा चूमे इस नभ की देहरी,
शीतलता का प्रतीक दूत बना।
रातों की चादर पर चाँदी चमके,
खग मंडल का यह रत्न बना।।
ग्रह सभी निज पथ पर चलते,
नियमों की यह ज्योति अनूठी।
प्रकृति उपहार सदा अटल रहते,
ईश्वर की यह रचना अनोखी।।
ब्रह्मांड का यह खेल निराला,
गति अचल, पर दृश्य दिव्य।
चिरकाल तक रहेगा विस्तृत,
ज्योति अमर, अमर संगीत।।
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर,फतुहा,पटना, बिहार