यही हमारी हिन्दी है- संजीव प्रियदर्शी

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जिस वाणी में बोल रहा हूँ

यही हमारी हिन्दी है।

माॅम- डैड संस्कार न अपना,

माँ- बाबूजी हिन्दी है।।

मिस्टर- मैडम कहना छोड़ो,

श्री- महोदया हिन्दी है।

आंटी -अंकल क्यों बकते हो,

चाचा- चाची हिन्दी है।।

फ्रेंड -फ्रेंड कितना ही जप लो,

मित्रता का वह भाव नहीं।

मन के तारों को झनका दे,

पर भाषा में ताव नहीं।।

जब भी जागो, खेलो-खाओ

पढ़ लो गा लो हिन्दी में।

जब-जब हो मन बोझिल-बोझिल

दिल बहला लो हिन्दी में।।

अगर सामने सहपाठी हो,

करो नमस्ते हिन्दी में।

माता-पिता गुरु अग्रज को,

शीश नवाओ हिन्दी में।।

हिन्दी है संस्कृति हमारी,

सुनीति पाठ पढ़ाती है।

प्रेम- बंधुत्व और एकता में,

रहना सदा खिखाती है।।

जान बसी है इसमें अपनी

हर माथे की बिंदी है।

अब समय सब मिलकर कह दो,

राष्ट्र भाषा हिन्दी है।।

संजीव प्रियदर्शी

फिलिप उच्च वि० बरियारपुर, मुंगेर

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