योग सौम्य संजीवनी – दोहावली – देवकांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

दोहावली
योग सौम्य संजीवनी
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योग गणित का अंश है, यही खोज पहचान।।
दिव्य मिलन परमात्म का, सुंदर शुभ अवदान।।०१

नियमित योगाभ्यास से, मिलती मन को शांति।
बढ़ती है एकाग्रता, तन की निखरे कांति।।०२

योग हमारा लक्ष्य हो, करें हृदय स्वीकार।
मित्र बनाएँ शीघ्र ही, यही जीवनाधार।।०३

मन के पीछे भाव की, करिए नित अनुभूति।
कुंडलिनी गति योग से, करिए दृढ़ आकूति।।०४

रखना है यदि देह को, स्वस्थ चारु मजबूत।
निर्मल पावन योग के, बनें सर्वदा दूत।।०५

मन में पावन भाव रख, करिए नियमित योग।
सौम्य सुधा जीवन यही, दूर भगाए रोग ।।०६

योग सौम्य संजीवनी, नित्य पीजिए आप।
देह बुद्धि को स्वस्थ रख, छोड़ें अपनी छाप।।०७

देह लचीली हो सदा, क्रिया भावना योग।
वजन घटाकर देह का, रखिए नित नीरोग।।०८

देखो करके योग को, मिट जाएँ सब रोग।
अद्भुत ताकत गुण छुपे, कहते हैं सब लोग।।०९

देवकांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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