रावण दहन – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

अपने अंतर्मन का,
रावण दहन करें,
लोभ-मोह, दर्प-मान
बड़ा ही दानव है।

दूसरों से बैर भाव,
मानवता का अभाव,
क्षुद्र बुद्धि अहंकार
पीड़ित मानव है।

काम- क्रोध पद- रूप,
पुत्र-धन,- राज्य- भूप,
दिल बीच छिपकर
करता तांडव है।

मिले नहीं शांति कहीं,
निज दोष दिखे नहीं,
द्यूतक्रीड़ा बीच बैठा
बन के पांडव है।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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