स्त्री – रूचिका

Ruchika

मैं स्त्री संसार की धुरी,
प्रेम और सम्मान की अधिकारी,
नही अबला बेचारी,
नही बनना तकदीर की मारी।

अपनी किस्मत स्वयं लिखूँ,
अपनी कहानी स्वयं गढ़ूं,
सुनहरे भविष्य के लिए सदा
अपने वर्तमान को स्वयं पढूँ।

अपने पंखों में दम मैं भरूँ
नभ को छूने मैं उड़ू
परिवार का आधार बन बल दूँ,
स्नेह ,प्रेम, संयम को मैं जीवन दूँ

न सौन्दर्य की उपासना हो मेरी,
न बेवज़ह की आलोचना हो मेरी,
मुझमें धरा की विशालता रहे सदा,
बुद्धिमत्ता सदा सम्मानित हो मेरी।

आत्मसम्मान का सदा मेरे मान रहे,
मेरे अस्तित्व का बस इतना सम्मान रहे,
नही देवी बनाकर पूजा जाए मुझे,
मेरे जीवन का सदा ध्यान रहे।

मैं सृजना, मैं ही संरक्षिका हूँ,
प्रेम की पावन गाथा भी हूँ,
मेरे अस्तित्व से सुकून मिले
पीड़ा बेवज़ह कभी न सहूँ।

रूचिका
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय तेनुआ,गुठनी सिवान बिहार

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