हिन्दी – एक धुंधली सी यादें – SHRAVAN KUMAR “SHASHWAT”

हिन्दी के अधूरे अल्फ़ाज़ —— हर बार आज के दिन हमलोग हिन्दी के खोए सम्मान को पुनः पाने के नए नए वादे करेंगे लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ करेंगे। फिर अगले साल आज के दिन ही फिर एक नए वादे किए जाएंगे हिन्दी को सजाने के लिए… इसी विषय पर हिन्दी जो हमारी कहने को तो हमारी मातृभाषा है, आपसे कुछ कह रही है, पढ़िएगा जरूर, समझिएगा जरूर और सोचिएगा जरूर.. कहीं इसके दर्द की गुंज आपके कानों तक इस बार पहुंच जाए।🙏


सुनो ना,

क्या अब याद नहीं आती तुम्हे मेरी,

बिल्कुल पत्थर दिल हो गए हो तुम,

पहले तो याद किया करते थे रोज,

अब बस वर्ष में एक बार.. वो भी आज के दिन

जैसे बस जन्मदिन के दिन गैरों को याद करते हैं।


सुनों न, 

क्या भूल गए वो सब बातें, 

वो अधिकार और अनकही सी अल्फाजें ,

बहुत बड़े बड़े वादे किया था तूने पिछले साल भी,

फिर से याद दिलाना पड़ रहा कि,

तुम्हे मुझे मेरा हक दिलाना था …


सुनों न,

क्या मुझे अपना हक मांगना पड़ेगा,

या बोलो कि मुझे छीनना पड़ेगा,

नहीं, उम्मीद तो थी तुमसे बहुत कि 

मुझे भूलोगे नहीं तुम कभी,

लेकिन हर बार की तरह पिछले बार भी भुला दिए तूने..


सुनो न,

मत करना इस बार भी वैसे ही,

आज के दिन मान सम्मान बहुत देते हो,

फिर कुछ दिन बाद वैसे ही गिरा देते हो,

जैसे कोई गैर हूं मै तेरा

इस बार मत करना वैसे,या वादा ही मत करना

मै सोच लुंगी कि यही है फितरत मेरी,

यही है नसीब मेरा।


लेकिन मै हारूंगी नहीं ,इतना याद रखना,

अगर मिट जाऊं तो बस फरियाद करना,

लेकिन रोओगे बहुत तुम मेरी याद में हमेशा,

जब कोई सुनने वाला ना होगा अपना,

और कोई समझने वाला ना होगा।

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