है बेबस धरती – एस.के.पूनम

S K punam

मनहरण घनाक्षरी

बहती है कलकल,
सोचती है हरपल,
सूखे नहीं नीर कभी,यही दुआ करती।

तट पर आशियाना,
साधु-संतों का ठिकाना,
होता यशोगान हरि,वेदना को हरती ।

गर्भ में जहान पले,
सीप-मोतियाँ भी भले,
तल नष्ट होता देख,वह आहें भरती ।

टकराती है लहरें,
डूब जाती है शहरें,
प्रकृति तांडव करे, है बेबस धरती।

एस.के.पूनम

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