सूरज दादा – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

सूरज दादा   सूरज दादा,

तुम प्रकाश फैलाते हो।

गर्मी में तुम बड़े सवेरे आते,

जाड़े  में  क्यों इतनी  देर  लगाते हो ?

पर शाम में  जल्द  ही  तुम कहीं  छुप जाते  हो।

गर्मी में  अधिक  ताप  हो देते,

पर जाड़े  में  इसे  छोड़  कहीं  तुम  आते  हो।

जाड़े में बड़े  प्रिय लगते  तुम,

पर  गर्मी में बड़े तीक्ष्ण बन जाते हो।

भाते  तुम सदा  जाड़े में  दादा ,

जब  बड़े  भोले  भाले  बन जाते हो।

तुमसे ही यह  ब्रह्माण्ड है सारा ,

तुमसे ही है यह जग उजियारा।

तुम बिन  हर नहीं सकता अँधियारा,

हो तुम्हीं  सब प्राणियों का  सहारा।

तुम- सा नहीं  सखा  दुनिया में ,

तुम-सा नहीं  देव  दुनिया में।

जग के तुम हो  बड़े  समदर्शी ,

तुम्हारे  रूप  बड़े   प्रियदर्शी।

तुम हो जग  के  पालनहारे,

हो  तुम्हीं  जग के  रखवारे।

तुम बिन जग है  अति  सूना ,

तुम बिन प्रेम कहीं  नहीं दूना।

तुम्हीं  हो  ब्रह्माण्ड  चलानेवाले,

हो तुम्हीं  ग्रहों   के  रखवाले।

तुमसे ही  सबके प्राण पलते हैं,

तुमसे ही सबके जान चलते हैं,

हो  जग  के  तुम  बड़े   रक्षक ,

तुम  हो  घोर अंधकार  के  भक्षक।

जीवन तुम्हीं  धन्य  कर जाते,

भेद नही  कभी  तुम कर पाते।

है  यही  तुम्हारी  बड़ी निष्पक्षता ,

यही  है  तुम्हारी  बड़ी  महानता।

तुम ही सबके  प्राण  के  दाता,

तुम्हीं हो सबके  भाग्य विधाता।

अमारनाथ  त्रिवेदी
पूर्व  प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर  माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखण्ड -बंदरा , जिला- मुजफ्फरपुर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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