बारिश की बूंदे गिर रही हैं ।
यह उनकी नियति है।
उन्हें गिरना है ।
उन्हें नहीं मालूम की अपना
घर छोड़ते वक्त किस मंजिल
पर आकर रुकेंगी?
किसी पोखर में गिरेगी ,
या किसी गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों पर
या किसी बदबूदार नाली में ,
या फिर गंगा की मचलती हुई पावन लहरों में।
वह गिरेगी जमुना के तट पर
बने हुए कदम के पेड़ पर
जहाँ कभी कृष्ण ने अपनी लीला रचाई थी ।
या फिर गिरेगी किसी गरीब की झोपड़ी पर ।
या किसी तरूणी,कुमुद कामिनी के
बालों से खेलती हुई उसके,
कपोलों को स्पर्श कर अठखेलियाँ करेंगी।
या फिर गिरेगी किसी किसान के खेतों में
पर जहाँ वह हल चला रहा हो।
वह नहीं जानती,पर हाँ!
उसे बरसना है,उसे अपना कर्म करना है ।
वह बरसती है और अपना धर्म निभाती है।
कर्म ही जीवन है,हमें यह सिखाती है।
बिंदु अग्रवाल
शिक्षिका मध्य विद्यालय गलगलिया
किशनगंज बिहार
