योग सौम्य संजीवनी – दोहावली – देवकांत मिश्र ‘दिव्य’

दोहावली योग सौम्य संजीवनी “””’””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” योग गणित का अंश है, यही खोज पहचान।। दिव्य मिलन परमात्म का, सुंदर शुभ अवदान।।०१ नियमित योगाभ्यास से, मिलती मन को शांति। बढ़ती है एकाग्रता,…

करें योग रहें नीरोग – मृत्युंजय कुमार

करें योग-रहे नीरोग आओ हम सब योग करें। जीवन को नीरोग करें।। सुबह सवेरे उठकर जो करते हैं योग। बिमारी दूर भागती है और वो सदा रहते हैं नीरोग।। स्वस्थ…

योग – गिरींद्र मोहन झा

योग योग का अर्थ है जुड़ना, एकाग्रता, निरन्तर अभ्यास। कर्म-कुशलता, समत्व, दुःखसंयोग-वियोग का प्रयास।। भक्तियोग, ज्ञानयोग, राजयोग, कर्मयोग इनके चार प्रकार। योग का चरम व अंतिम उद्देश्य है, परमात्मा से…

पिता व्योम के तुल्य हैं – विधा दोहा – देवकांत मिश्र ‘दिव्य’

विधा – दोहा पिता व्योम के तुल्य हैं “”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” पिता व्योम के तुल्य हैं, पिता सृष्टि विस्तार। जीवन दाता हैं पिता, विटप छाँव भंडार।। नयन सितारे हैं पिता, श्रेष्ठ सुघड़…

पिता – गिरींद्र मोहन झा

पिता परमपिता परमेश्वर हैं, हम सब उनकी संतान, उन्हीं की अनुकम्पा से, हम सब सदा क्रियमाण । सबसे पहले परमपिता परमात्मा को प्रणाम, उन्हें वन्दन, उनका स्तवन, पुण्यप्रद उनके नाम।।…

पिता – रुचिका

पिता पिता गहरी काली तमस में बनकर आते हैं प्रकाश। उनसे जुड़ी हुई है मेरे जीवन की हर आस। वह जेठ की भरी दुपहरी में आते हैं बनकर हवा का…