गगन में कोहरे छाऐ हुए, बादल की छलकती है शमा। जग-सारा विरान हो गए, ठुठरती ठंड की है पनाह ।। कोई चिराग की आशंका नहीं, दिवाकर भी ख़ामोश पड़े। नित-रोज़…
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कड़ाके की ठंड- दीपा वर्मा
कड़ाके की ठंड है , ठंड बड़ी प्रचंड है । शीतलहर जारी है , हर पल सब पर भारी है। यह ठंड सबको सहना है, रजाई में ही रहना है।…
आह्वान – अमरनाथ त्रिवेदी
मुँह में राम दिल मे छुरी , लेकर न कभी जिया करो । ऐसा न कभी किया करो । । मानव मन की यह शान नहीं , यह दानवता की…
सूरज महान है-एस.के.पूनम
विद्या:-मनहरण घनाक्षरी व्योम,धरा प्रभा भरी,उष्णता से शीत डरी, दूर किया थरथरी,यही पहचान है। अश्व पर बैठ चले,संसार में ज्योत जले, फल,फूल खुब फले,सूरज की शान है। गगन चमका तारा,भुला गिनती…
आख़िर हूं मैं कहां-जयकृष्णा पासवान
उड़ता है मन, परिंदों का आसमां । खिलता हुआ फूल, भंवरों का नग़मा।। ढुंढने चल पड़ा मैं, खुशियों का जहां। आख़िर हूं मैं कहां…२.।। नदियों के किनारे में, पर्वतों के…
कर्म -वाणी-अमरनाथ त्रिवेदी
जिस ओर हम पग धरें , सुकर्म सम्मत नीति से । फिर हार हो सकती नही , चाहे कोई भी छल रीति से । प्रयास से पूर्व समर में ,…
सच्चा पुरुषार्थ-अमरनाथ त्रिवेदी
है पुरुष वही सच्चा जिसमे , पुरुषार्थ भरा हो तन – मन मे । जीवन जीता हो परहित में , न बैर रखता अन्तर्मन में । प्रतिपालक हैं भगवान सभी…
प्रथम रश्मि – मनु कुमारी
प्रथम रश्मि का आना रंगिणी! तूने कैसे पहचाना? कहां – कहां हे बाल हंसनि! पाया तूने यह गाना? सोये थे जो नन्हें पौधे,अलसाई दुनियां में मन्द – मन्द हवा के…
गुण – अवगुण- अमरनाथ त्रिवेदी
गुण -अवगुण धर्मिता को , प्रकृति भी वरण करती है । जहाँ प्रकृति सृजन है करती , विनाश बीज भी बोती है । सूर्य तम का नाश है करता ,…
कर्त्तव्य- अमरनाथ त्रिवेदी
देव -दृष्टि का स्वपुँज , कर में लिए क्यों फिरते हो ? संतप्त हो या अभिशप्त अभी , कुछ क्यों न धरा हेतु करते हो ? परिवर्तन करना वश में…