नन्ही परी आज आई, घर में खुशियां लाई, आँगन में किलकारी,गूंज रही सरेआम। नूतन विचारों संग, छू ली आसमानी रंग, श्रम साध्य पूरी कर,जीती जीवन संग्राम। पाई-पाई जोड़ कर, माता…
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Through Padyapankaj, Teachers Of Bihar give you the chance to read and understand the poems and padya of Hindi literature. In addition, you can appreciate different tastes of poetry, including veer, Prem, Raudra, Karuna, etc.
दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
रिश्ता हो कायम सदा, भरते रहें मिठास। अपनेपन का भाव रख, करिए सुखद उजास।। ईश-याचना नित करें, रखें न कपट विचार। निर्मल मन की भावना, देती खुशी अपार।। संधिकाल के…
दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भूप जनक के बाग में, आए राजकुमार। दिव्य मनोहर वृक्ष से, मुग्ध नयन अभिसार।। नव किसलय नव पुष्प से, हर्षित पुष्पित बाग। कीर मोर के मध्य में,कोयल छेड़े राग।। ताल…
रुपघनाक्षरी – एस.के.पूनम
सरयू के तट पर, सीताराम बैठ कर, मांझी की प्रतीक्षा कर,भक्तों का बढ़ाये मान। थाल में निर्मल जल, दृगों से गिरते आँसू, प्रभु के चरण धुले,मिले सेवा का प्रमाण। दीन-हीन…
मनहरण घनाक्षरी – एस.के.पूनम
रुपहली आभा संग, लिए हुए लाल रंग, उदित है प्रभाकर,प्रवेश उजास का । हर्षित हो वसुंधरा, इठलाते झूमे भौंरा, हरियाली देख आए,मौसम प्रवास का। आए पंछी उड़ कर, तृण लाए…
मुंह का निवाला – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
मुंह का निवाला गरीबों को दुनिया में, सिर पर छत नहीं, हमेशा अभाव में ही कटता जीवन है। थक जाती आँखें खोज, मुँह का निवाला रोज, शायद हीं भरपेट मिलता…
विशुद्ध हो सटता – एस.के.पूनम
🙏कृष्णाय नमः🙏 विधा:-मनहरण (विशुद्ध हो सटता) घर-बार छोड़ कर, करते हैं योग ध्यान, बिछा हुआ भ्रम जाल,काटे नहीं कटता। आदान-प्रदान कर, कुँज मुंज सजाकर, चमत्कार देख कर,गुप्त नाम रटता। लघु…
करती हूँ बंदगी – एस.के.पूनम
🙏कृष्णाय नमः🙏 विधा:-मनहरण (करती हूँ बंदगी) तरसती है निगाहें, भरती हैं नित्य आहें, भूखे पेट तड़पती,मजबूर जिन्दगी। भाग्य से निवाला मिला, जूठन भी मिला गिला, आहार विनाश कर,फैलाए क्यों गंदगी।…
जब से आई गरमी – मीरा सिंह “मीरा”
सूरज बाबा ने हद कर दी सुबह सवेरे आते जल्दी। सूनी सूनी सड़कें गलियाँ दुबके बैठे बच्चे घर जी। आंख मींचते आ जाते हैं बिन पहने ही अपनी वर्दी। गरमी…
मौसम का असर – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
रात दिन में भी ज्यादा- पड़ता है फर्क नहीं, ज़ालिम मौसम देखो, ढा रहा कहर है। जैसे -जैसे दिन ढले, चिलचिलाती लू चले, अब तो ये सुबह भी लगे दोपहर…