प्रकृति और मनुष्य- रणजीत कुशवाहा

प्रकृति है जीवन का आधार। मनुष्य ने किया इससे खिलवाड़।। गगनचुंबी इमारत की जाल बिछाई। धरा पर कंक्रीट रुपी जंगल फैलाई।। पेड़-पौधे की अंधाधुंध कर कटाई। कृषि योग्य उपजाऊ भूमि…

मैं खुश हूं कि- रणजीत कुशवाहा

मैं खुश हूं कि क्योंकि मैं थोड़ा बहुत कमा लेता हूं, यानि बेरोजगार तो नहीं हूं , जो बेरोजगार लोग होंगे उनका जीवन यापन कितनी कठिनाई से गुजरती होगी। मैं…

रुप अनेक पर मैं इक नारी हूं-रणजीत कुशवाहा

अपने पापा की प्यारी परी हूं। जननी मां की राज दुलारी हूं।। बड़े भैया की बहना न्यारी हूं। बाबुल के अंगना की फूलवारी हूं ।। मैं तो दो जहां की…

बीत गई बात वो- एस.के.पूनम

विद्या-:- मनहरण घनाक्षरी जीवन का नवरंग,इंद्रधनुष-सा अंग, धरा पर छाया कण, मिल गया जात को। मुस्कुराया अंशुमन,तप गया मेरा मन, मुरझाये पुष्प धरा, तपिश से मात जो। सूरज लोहित मला,प्रकृति…