उत्पाती वर्षा वर्षा रानी क्रुद्ध हो, करती है उत्पात।इंद्र साथ भी दे रहे, कर भीषण वज्रपात।। बाहर खतरा है घना, छिपकर रहते लोग।वही लाचार विवश हो, करते कुछ उद्योग।। हान…
Category: प्रकृति
नन्हा पौधा
नन्हा पौधा दादा जी ने बीज लगाया,दादी ने पानी डलवाया।चुन्नू-मुन्नू दौड़े आए,साथ में खाद भी लेकर आए। सात दिनों के बाद बीज ने,नन्हीं-नन्हीं पलकें खोली।बड़ी सलोनी है यह दुनियाँ,छोटी सी…
प्राकृतिक आपदा -जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
रूप घनाक्षरी छंद में कभी-कहीं बाढ़ आए, कभी तो सुखाड़ आए, सड़कें मकान सारे, हो जाते हैं जमींदोज़। पहाड़ चटक रहे, बादल भी फट रहे, हर साल कोई नई, आफत…