हे सखी! – पथिका छंद – राम किशोर पाठक
हे सखी! मुझे बतलाओ।
कैसे रहूँ बिना साजन के, बैठी घर सदा अकेली।
उठते कितने भाव हृदय में, जैसे हो एक पहेली।
मन की हालत समझ न पाई, कैसी हो सखी सहेली।
सुखमय कैसे रहूँ गेह में, कुछ तो ऐसा समझाओ।।०१
हे सखी! पास में आओ।
करवट लेकर रैन गुजारी, आधी विस्तर है खाली।
दिन में काम निपट जब जाए, बैठ बजाऊँ बस ताली।
प्रियतम का नित राह निहारूँ, रहकर हर-पल मतवाली।
नीरस होते मन मंदिर में, तुम दीपक एक जलाओ।।०२
हे सखी! राह दिखलाओ।
नम रहती है हरपल आँखें, जिसमें हैं सजना बसते।
फिर भी उनको तरस न आती, बेबस हो सदा तरसते।
करूँ जतन आखिर मैं कैसा, जिससे अंक हमें कसते।
बोझिल मेरे इन नैनों में, कुछ फिर से आस जगाओ।।०३
हे सखी! नहीं भरमाओ।
क्या साजन फिर वापस मुझको, पहले सा अपनाएँगे।
पुलकित होकर संग सजन के, क्या फिर से रह पाएँगे।
उनके अंतस में क्या फिर से, अपना जगह बनाएँगे।
चिंता हर-पल मुझे सताती, तुम आकर दूर भगाओ।।०४
हे सखी! नहीं बहलाओ।
क्या कोई उनको भाया है, कौन उन्हें है भरमाया।
शायद करके जादू-टोना, हो कोई बाण चलाया।
वजह बताओ क्योंकर मेरी, चले न कोई भी माया।
पता लगाकर कारण इसका, मेरे हित कदम बढ़ाओ।।०५
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
