होली का त्योहार है अनुपम- अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

सब मिलकर हम गाना गाएँ,
होली पर्व  खूब  मनाएँ।
नई उमंग के नए दौर में,
जरा मन से  मैल भगाएँ।

आज नहीं कोई ऊँचा नीचा,
खेलें  दिल   से   होली।
सबके  वसन  भींगे  होते हैं,
हर हाथ में होती  झोली।

अपनों संग हम नाचें गाएँ,
खुशियों से हम दिल भर लें।
आज बहुत ही शुभ दिन आया,
हर को प्रेम के वश में कर लें।

होली क्यों आया जीवन में,
इसकी पड़ताल भी कर लें।
होलिका प्रह्लाद के अनोखे प्रसंग को,
चित में जरा भी भर  लें।

एक बार विष्णु भक्त प्रह्लाद ने,
फिर से पिता का वचन न माना।
तब पिता  बहुत  क्रोधित हो,
पुत्र को अग्नि में ही जलाना ठाना।

रची  योजना  यह  थी  कि
पुत्र प्रह्लाद  भस्म  हो जाए।
पर प्रभु की इच्छा इसके विपरीत,
प्रह्लाद पर तनिक भी आँच न आए।

होलिका प्रह्लाद को गोद में ले,
अग्निरोधी चादर लपेट कर बैठी।
उसके मन में अपार  खुशी थी,
होलिका स्वयं भी बैठकर ऐंठी।

इतने में आया पवन का झोंका,
उड़ गई चादर होलिका के तन से।
खाक हुई होलिका  अग्नि  में,
बच गया प्रह्लाद ईश्वर के मन से।

तबसे प्रह्लाद के बचने की खुशी में ,
प्रत्येक  वर्ष  होली  मनाई जाती।
मानो होलिका के दहन करने को ले
चौक चौराहे सम्मत खूब सजाई जाती।

फाल्गुन मास की पूनम  रात्रि को,
होलिका  दहन  खूब   होता।
चैत्र  मास  के  प्रतिपदा  को,
लोग  रंगों  में  खूब   खोता।

इस पावन रंगों  के त्योहार के 
असली मकसद को हम जानें ।
कभी नहीं किसी से द्वेष भाव हो,
हर इंसान की कीमत को हम मानें।

होलिका दहन  के  दिन घर में,
नमकीन व्यंजनों से थाल सजाएँ।
चैत्र प्रतिपदा होली के दिन,
पुए, खीर से घर आँगन महकाएँ।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा,जिला- मुजफ्फरपुर

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