कृष्ण कन्हैया अगर, आते मिलने आज।
होते विस्मित मगर, देख सभी के काज।
माखन मिसरी सहज, उनको देता कौन।
दुनिया दारी समझ, रहे न कोई मौन।।
राधा जैसी सहज, मिलते रूप अनेक।
प्रेम दिवानी महज, मिले न कोई एक।
दुर्योधन को सबल, पाते चारो ओर।
न पार्थ को दे असर, गीता का ही शोर।।
संग सुरा के सतत, व्यस्त मिले हर लोग।
परनिंदा का प्रबल, लगा सभी को रोग।।
रुकना उनको अगर, पड़ता कुछ दिन और।
नयी द्वारका नगर, शीघ्र बनाते ठौर।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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