मैं किसान हूँ-प्रभात रमण

मैं किसान हूँ

हूँ दीन, हीन, गरीब,
मगर मैं सबसे बड़ा अमीर हूँ ।
ये जमीन मेरी है,
ये आसमाँ मेरा है ।
बहती पवन मेरी है,
सारा जहाँ मेरा है ।
सूरज को जगाता हूँ,
दिन भर खेतों में थक जाता हूँ ।
जिस मिट्टी ने मुझको जन्म दिया,
उसी मिट्टी से लड़ता हूँ ।
सीना चिर कर उसी का,
फसल कई बोता हूँ ।
धूप धुक्कड़ सबसे मैं भिड़ता हूँ ।
है प्रकृति पर विश्वास मुझे,
न कभी किसी की आस मुझे,
सबको खाना देता हूँ।
पशु पक्षियों से मुझको प्यार है,
हर जीव में मेरा यार है,
न है किसी से दुश्मनी,
न ही किसी से तकरार है ।
मेरी जरूरतें कम है
इसलिए सब स्वयं ही पा जाता हूँ ।
सबका पालन पोषण मुझसे होता है,
मेरा ही दिया सब खाते हैं,
इस बात का न अभिमान है ।
न जाने मैं किसका आन हूँ ?
अब तो मुझे पहचान लो,
मैं गाँव का एक किसान हूँ !
मैं गीत नया गाता हूँ ।
मिट्टी से पैदा हुआ,
मिट्टी में पला बढ़ा,
मिट्टी में मिल जाता हूँ ।।

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
 फारबिसगंज अररिया

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