पुस्तक जीवन का श्रृंगार-दिलीप कुमार गुप्त

       

 पुस्तक जीवन का श्रृंगार 

तू सुरवन्दिता का भौतिक रूप
तेरी महिमा अद्भूत अनूप
तुममें सभ्यता संस्कृति समाया
तुझसे अतीत का दर्शन आया
तू साक्षी है वैदिक यति गीत की
बुद्ध की करूणा मौन प्रीत की
तू मानवीय गरिमा का सार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

तू निर्झरणी सदचिंतन सदज्ञान की
तू पावन विग्रह वेद पुराण की
ऋषियों का दर्शन तुममें छिपा
संतों का ज्ञान मुक्तहस्त बँटा
सत्य हेतु हरिश्चन्द्र का समर्पण
कृष्ण की गीता राम का दर्शन
तेरी छवि जैसे सिरजनहार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

तू नालंदा की स्वर्णिम धरोहर
तुझसे सुशोभित ज्ञान सरोवर
तुमने ज्ञान पिपासु का प्यास बुझाया
अखिल धरा का संताप मिटाया
प्रेम सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया
मानव प्रगति का मार्ग सुझाया
तेरे प्रति नतमस्तक संसार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

साहित्य गणित विज्ञान स्वरूप
पुस्तक तेरे अप्रतिम हैं रूप
सामाजिक आर्थिक राजनीतिक
हास्य बिनोद की मर्यादित रीति
उर में समाहित सदज्ञान की यादें
विश्व बंधुत्व कल्याण की बातें
तू जननी पूज्या शुभ संस्कार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

मानव मन की सब कामना
लौकिक या पारलौकिक याचना
औषधि तू संताप निदान की
कुंजी शाश्वत सुख धाम की
शबरी का आत्मज्ञान तुममें
तपस्वी का गूढ आख्यान तुममें
तेरी वंदना को मुख शेष हजार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

ऋषि मुनि भले आज नहीं हैं
हैं भी तो हमें भान नहीं है
तू आरण्यक यति जीवंत रूप
तुमसे निःसृत है तेज पूंज
मनुज शांति का सोपान है तू
आत्म कल्याण का जहान है तू
तेरे पन्ने में स्वर्णिम युग चार है
पुस्तक! तू जीवन का श्रृंगार है।

दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी
अररिया

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