रामायण – राम किशोर पाठक 

Ram Kishor Pathak

आओ चिंतन कर लें थोड़ा, जो खुद गढ़ते हैं।

गाथा सुंदर रामायण की, हम-सब पढ़ते हैं।।

नारायण होकर जब नर सा, विपदा झेला है।

फिर क्यों रोते रहते हम-सब, दुख का मेला है।।

त्याग तपस्या सीख न पाए, बनकर अनुयायी।

स्वार्थ सदा लेकर हम बैठे, जो है दुखदायी।।

लेकर सुख की चाह सदा ही, आगे बढ़ते हैं।

गाथा सुंदर रामायण की, हम-सब पढ़ते हैं।।०१।।

खुद से ज्यादा शुभ दुनिया की, रघुवर सोचें थें।

खुद की सुख सुविधा को लेकर, जो संकोचे थें।।

साधक जैसा अपना जीवन, जीते पल-पल थें।

रखकर धीरज का संबल जो, रहते हर-पल थें।।

आशाओं की दीप जलाए, चोटी चढ़ते हैं।

गाथा सुंदर रामायण की, हम-सब पढ़ते हैं।।०२।।

पढ़ते जीवन गाथा हैं पर, अपनाना भूलें।

सुख के पल में सुमिरन भूले, याद रखें शूले।।

बदले हम-सब चिंतन अपनी, संशय को छोड़ें।

अपना जीवन रामायण से, कुछ तो हम जोड़ें।।

अपनी कमियाँ भूलें हम तो, सब पर मढ़ते हैं।

गाथा सुंदर रामायण की, हम-सब पढ़ते हैं।।०३।।

गीतकार:- राम किशोर पाठक 

प्रधान शिक्षक 

प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।

संपर्क – 9835232978

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