संस्कारों से प्यार है-नूतन कुमारी

संस्कारों से प्यार है

जो बना ले संतुलन परिस्थिति से,
करे द्वंद्व स्वयं से और नियति से,
कायम करे वर्चस्व, अपने कृति से,
पाना देना व त्यागना सीखें संस्कृति से,
उस मानव का जग में होता उद्धार है,
जो करता अपने संस्कारों से प्यार है।

हिम्मत ऐसी कि पाषाण की दीवार तोड़ दें,
अल्फाज ऐसे कि हृदय में मिठास घोल दें,
हो जुनून ऐसा कि धरा से व्योम जोड़ दें,
प्रेम हो इतना कि पवन का रुख मोड़ दें,
उस मानव का नहीं होता परिहार्य है,
जो करता अपने संस्कारों से प्यार है।

लक्ष्य को साध लूं, जो ऐसा प्रण करता हो,
हर रोज थोड़ा ही सही, जतन करता हो,
निष्ठा, भक्ति व सच्ची लगन जगाकर,
दीप सा प्रज्वलित होऊँ, मनन करता हो,
परिशुद्ध प्रेम का भी वही होता हकदार है,
जो करता अपने संस्कारों से प्यार है।

दुनिया को सत्मार्ग पर है जो ले आता,
इतनी कुशाग्र बुद्धि जो है पा जाता,
अपनें सुकर्मों से अमिट पदचिह्न छोड़ जाता,
माँ-बाप के अरमां संजो विजय-ध्वज लहराता,
उस कर्तव्यपरायणता को मेरा नमस्कार है,
जो करता अपने संस्कारों से प्यार है।

नूतन कुमारी 
डगरुआ पूर्णियाँ
बिहार

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