वंदनवार सजे शारदा – कुंडलिया छंद – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

पेड़ लगा मां के नाम से, होंगे जग में नाम। उनके ही नेपथ्य में, पाना चिर विश्राम।। पाना चिर विश्राम, जगत में स्वर्ग मिलेगा। श्रम सुंदर तालाब के, पंक में…

पेड़- गिरीन्द्र मोहन झा

पेड़ बीज को अंकुरित होने में भी लगता है संघर्ष, पौधे धीरे-धीरे बढ़कर हो जाते हैं पेड़, यह पतझड़-वसंत-ग्रीष्म-वृष्टि-शीत, सबको सहता है, सबका आनंद लेता है, उचित समय के अनुसार,…

हिंदी – गिरिधर कुमार

हिंदी   हिन्द की आवाज, प्राकृत, पाली, संस्कृत से क्रमशः निःसृत, भारतीयता की पहचान हिंदी।   भारतेंदु से पंत तक, महादेवी से भावपूरित, निराला के अंनत तक, दिनकर की ओज…

एक पौधा लगाऊंगा – राम बाबू राम

एक पौधा लगाऊंगा   एक पौधा लगाऊंगा, उसमें रोज पानी डालूंगा। जंगल-झाड़ काटकर, साफ-सुथरा रखूंगा, जब पौधा बड़ा हो जाए, उसके छांव में बैठूंगा। फिर झूला झूलूंगा, फल तोड़ घर…