उठो, जगा लो मन का दीपक,
भर लो जीवन में स्नेह-रूपक।
सपनों के पंखों से उड़कर,
छू लो नभ का स्वर्ण-सुंदर।
विश्वास बने हर पल साथी,
नव आशाओं की हो थाती।
चरण-चरण पर धैर्य दिखाए,
संकल्पों के पुष्प उगाए।
काँटे हों या जीवन राहें वीरान,
रुकना तज दो—बढ़ो महान।
अड़चनों को गह लो हँसकर,
जीवन रच दो दीपक बनकर।
दुःख-सागर भी चूमे पग को,
मिल जाए नव तेज़ रग-रग को।
चट्टानों से भिड़ते जाओ,
स्वयं विघ्नों को हरते आओ।
जब श्रम-सुधा से पथ भीगेगा,
तब ही सपना सच हो लीलेगा।
सौरभ भर जाए हर कोने,
जीवन महके अमृत बोने।
मुस्कानों की मधुर माला,
सज जाए बनकर उजियाला।
चलो, बढ़ो उस विजय-नगरी तक,
संकल्पों से ज्योति निखरी तक।
सुरेश कुमार गौरव
प्रधानाध्यापक, उ.म.वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
0 Likes