विधा: मनहरण छंद
मगध की भूमि पर,
कुँवर सेनानी वीर,
हुंकार शार्दूल सम, दुश्मनों के काल थे।
न थी उम्र की चिंता,
न थी शिकन की रेखा,
आभा लिए रवि-सम, चमकते भाल थे।
साहस था बेमिसाल,
लगी गोली, काटी बाँह,
संहारक दुश्मनों के, रूप विकराल थे।
हाथ में खड्ग लिए,
अश्व पर सवार हो,
प्रहार से शत्रु चीखें, योद्धाओं के लाल थे।
एस. के. पूनम
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