सरस्वती वंदना- अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

कर दे  निहाल  माता,
मेरे सपनों को जगा दे।
जैसी  हो  तेरी  मर्जी,
माँ अपनी शरण लगा ले।

करता  हूँ  तेरा   वंदन,
तेरा  स्नेह   चाहता  हूँ।
अब तक तुझसे जो मिला है,
उसमें कुछ और तू बढ़ा दे।

तेरी  भक्ति  में  है शक्ति,
तेरा आशीर्वाद चाहता हूँ,
यह जीवन तुझे ही अर्पित,
माँ अपनी शरण लगा ले।

कर  दे  निहाल  माता,
मेरे सपनों को जगा दे।
जैसी  हो  तेरी  मर्जी,
माँ अपनी शरण लगा ले।

तू  विद्या की हो दात्री,
तू ही बुद्धि की विधात्री।
तेरे चरणों  में पड़ा मैं,
मैया पार तू  लगा दे।

विद्या  के बिना  क्या,
यह जीवन है धन्य रहता?
तेरी कृपा बिना क्या,
रूप मानव का निखरता?

कर  दे निहाल  माता,
मेरे सपनों को जगा दे।
जैसी हो  तेरी  मर्जी,
माँ अपनी शरण लगा ले।

कुछ  न अधिक  माँगू,
केवल तेरी कृपा चाहता हूँ।
अपना  बना  ले  मैया,
मै तेरा प्यार चाहता हूँ।

रोते  को  तू   हँसाती,
अज्ञानियों में ज्ञान भरती।
है तेरी  अपार  शक्ति,
माँ अपनी शरण लगा ले।

कर दे निहाल माता,
मेरे सपनों को जगा दे।
जैसी  हो तेरी मर्जी,
माँ अपनी शरण लगा ले।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा,जिला-मुजफ्फरपुर

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