गंगा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant Mishar

Devkant Mishar

पापनाशिनी मोक्षदायिनी।
पुण्यसलिला अमरतरंगिनी।
ताप त्रिविध माँ तू नसावनी
तरल तरंग तुंग मन भावनी।।

भक्ति मुक्ति माँ तू प्रदायिनी
सकल जगत के दुख हारिणी।
जग का पालन करने वाली
सबके मन को हरने वाली।।

प्यासों की नित प्यास बुझाती
बिछड़ों को माँ खूब मिलाती।
सुखद सौम्य रस पान कराती
रौद्र रूप माँ कभी दिखाती।।

जय जय माँ गंगा, जो बोले
अंतर्मन की गठरी खोले।
पुण्य चाह में जो भी आते
सदा कृपा माँ पाकर जाते।।

पावन गंगा तट जो आए।
अमित तोष आनंद लुटाए।
‌जैसे राम, लखन सिय आए
केवट मंगल सुख को पाए।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ भागलपुर, बिहार

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