रणभूमि में धनुष त्याग
रथ के पीछे बैठ गए अर्जुन।
भगवान बोले नपुंसकता को त्याग
युद्ध के लिए खड़ा हो जा अर्जुन।
गोविंद से कह युद्ध नहीं करूँगा
चुप हो गए अर्जुन ।
रणभेरी बज गई रणभूमि में
अब शस्त्र उठा हे अर्जुन!
तू हृदय में स्थित अज्ञान का
तलवार से छेदन कर
युद्ध के लिए खड़ा हो जा
हे भरतवंशी अर्जुन।
काम क्रोध से रहित
जीते हुए चित वाले होते ज्ञानी
चंचल मन बैराग्य से वश में
होता हे कुंती पुत्र अर्जुन।
तपस्वियों से श्रेष्ठ
तू योगी हो हे अर्जुन।
पृथ्वी जल अग्नि वायु
आकाश मन बुद्धि मेरी
प्रकृति है , हे पार्थ ।
मैं संपूर्ण जगत का प्रभाव
प्रलय हूँ हे अर्जुन!
संपूर्ण जगत मणियों सदृश
मुझ में गूँथा है हे धनंजय।
मैं जल में रस
चंद्रमा सूर्य में प्रकाश
संपूर्ण वेदों में ओंकार
आकाश में शब्द पुरुषों में
पुरुषत्व हूँ, हे अर्जुन!
ब्रह्म कर्म अध्यात्म क्या है
हे मधुसूदन!
परम अक्षर ब्रह्म, जीवात्मा अध्यात्म
त्याग कर्म है हे अर्जुन।
यज्ञ स्वधा औषधि मंत्र घृत अग्नि
हवन मैं हूँ।
विराट रूप में प्रकट हुए श्री भगवान
भय मत कर हे सव्यसाची
द्रोणाचार्य भीष्म पितामह जयद्रथ
कर्ण से युद्ध कर
आदिदेव परमधाम अनंतरूप
आपको बार-बार नमस्कार।
हे कृष्ण! हे यादव! हे सखे!
हे अच्युत सब अपराध क्षमा कर
हे देवेश चतुर्भुज रूप दिखला दो।
विश्वस्वरूप हे सहस्त्रबाहो!
तुझे बार-बार नमस्कार।
ब्यूटी कुमारी
मध्य विद्यालय मरांची
बछवाड़ा ,बेगूसराय