ठुठरती ठंड- जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

गगन में कोहरे छाऐ हुए,
बादल की छलकती है शमा।
जग-सारा विरान हो गए,
ठुठरती ठंड की है पनाह ।।
कोई चिराग की आशंका नहीं,
दिवाकर भी ख़ामोश पड़े।
नित-रोज़ काम में चिड़िया,
अपनी धोंसले म दुबकेअड़े।।
कोहराम मचा है धरती पर,
कर दे कृपा तू ये खुदा।।
गगन में कोहरे छाऐ हुए,
बादल की छलकती है शमा।।
कप-कपाती है बाग-बगीचे,
सूखी पड़ी है उसकी तना ।
कलियां ठिठुर रहीआंगन में,
पछुआ हवा का मस्ताना।।
ओस की बुंदे तारे बन गए,
पत्तियों सेहटाकर जाऐ कहां।
जग सारा वीरान हो गए,
ठुठरती ठंड की है पनाह।।
धड़कने भी थिरक रही है,
औरथरथराती होंठों की जुवां
कान भी कुछ कह रहे,
ठुठरती हाथों की रहनुमा ।।
पैर भी लड़खड़ा के कुछ,
“कह रहे दुबक जा”
पावक मिले जहां।
गगन में कोहरे छाये हुए,
बादल की छलकती है शमा।।
झरने भी सूख गए हैं सारे,
पर्वत पर पड़ गए टीले वहां।
नदियां मायूसी के दंश झेल रहे ।
हवा काट रहे कश्तियां वहां,
साहिल की आंखें नम है-मानो।
कुदरत का यही करिश्मा,
गगन में कोहरे छाऐ हुए।
बादल की छलकती है शमा,
जग-सारा विरान हो गए।।
ठुठरती ठंड की है पनाह ।।


जयकृष्णा पासवान
सहायक शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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