दादी का हलवा- रामकिशोर पाठक

 

अम्मा हलवा बना दो न।

दादी को खिला दो न।।

देखो शाम हो आई है।

दादी को भूख सतायी है।।

दादी को है दाँत नहीं।

रोटी चबा पाई नहीं ।।

हलवा खाना है आसान।

बनता जब आते मेहमान।।

अम्मा मेरी बात सुनो न।

घी में सूजी को भूनो न।।

दादी को मन भाती है।

अम्मा क्यों न बनाती है।।

चली बनाने अम्मा हलवा।

दिखने लगा प्रमा का जलवा।।

दादी के गले लगकर बोली।

शहद घोलती कानों में बोली।।

हम दोनों खुब मजे से खाएँ।

अम्मा यह समझ न पाएँ।।

मेरा मन था खाने का।

अभी हलवा बनवाने का।।

खा हलवा अब बाहर जाऊँ।

खेल-कूद फिर वापस आऊँ।‌।

अम्मा को बतलाओ न।

मुझको गले लगाओ न।।

रामकिशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश

पालीगंज, पटना

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