मेघा रे- कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

Kumkum

आ जाओ रे मेघ, इतना मत न इतराओ।
उजड़ रहा खलिहान,थोड़ा नीर बरसाओ।।
हैं बहुत परेशान,तप रही धरा हमारी।
कृपा करो भगवान,हरी भरी रहे क्यारी।।

पशु-पाखी बेचैन,सूखे कंठ तड़प रहें।।
देख जरा अब देख,कैसे विटप झुलस रहें।।
मत करना अब देर,सुन लो विनती हमारी।
काले-काले मेघ,बरसाओ वारि भारी।।

काले-काले मेघ,व्योम पर देखो छाया।
नाचे मन का मोर,ऋते मनभावन आया।।
झूम उठे नर-नार,देख मोहक हरियाली।
सौंधी-सौंधी गंध,महकती डाली-डाली।।

छेड़ रहे मल्हार,सुनो प्रभु अब तो हरसो।।
बरसो-बरसो अब मेघ,झमाझम झमझम बरसो।
पड़ने लगी फुहार, मौसम ली अंगड़ाई।
हर्षित हुए किसान,मुंह पर खुशियां आई।।

कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर
मुंगेर

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