मैं अभिशाप थी इस धरती पर
जैसे कोई शाप थी इस धरती पर,
भीड़ भरी दुनिया में मैं गुमनाम बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
जन्म से ही मुझे छला जा रहा था
चारदीवारी की शोभा कहा जा रहा था,
थी मैं लड़की बस बदनाम बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी।
धूमिल सी इस भंवर से निकल कर
कठिन पत्थरों से निखर कर,
कलम से ही मेरी पहचान बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
दुनिया से लाखों जख्म मिलते रहे
फिर भी होंठों को हरदम सिलते रहे,
दिल के दर्द मेरे लिये मुस्कान बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
जमाने के पिंजड़े में फंसती जा रही थी
सोने की समझ कर हंसती जा रही थी,
धीरे-धीरे सबसे अनजान बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
ना शोहरत थी ना दौलत थी
गरीबों जैसी ही मेरी हालत थी
शब्दों के हीरों से मैं धनवान बन गई थी
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
किसी को मुझ पे कोई नाज नहीं था
मेरे माथे कभी भी कोई ताज नहीं था
फिर अक्षरों के किले की सुल्तान बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।
वक्त गुजरता रहा मैं समझती गई
हर मुद्दों पर मैं लिखती गई
जिन्दगी अब बेहद आसान बन गई थी ।
आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी।
कंचन प्रभा
रा0मध्य विद्यालय गौसाघाट ,दरभंगा