समन्दर से दूर जा के कभी शंख नही मिलते
बंधन से एहसासों को कभी पंख नही मिलते
अपने एहसासों मे खुल कर नहाने के लिये
पँछी रुपी तन को हवाओं मे उड़ाने के लिये
अक्षर अक्षर मोती सा एक सूत्र बना कर देखिए
चंद मीठे सपनों के कोई ख्वाब सजा कर देखिए
छू कर कभी बारिश की बूंदें तन को भिंगाना सिखिए
भींनी भींनी उन खुशबू को मन पर बहाना सिखिए
कविता कोई बात नही, कविता बस एहसास है
किसी कवि के अन्तरमन की सिमटी हुई तलाश है
कभी कोई छण चुभता है तो निकलती है कोई आह सी
कामयाबी की कसौटी जब बोलती है वाह वाह सी
बनने लगते शब्दों के फिर सुन्दर कोई माला सी
वीरता में भी निकले कवि के मन से ज्वाला सी
सुर्य की ताप से ज्यादा चाँद की शीतलता से बढ़ कर
कवि सजाये अपनी कविता सपनों के घोड़े पर चढ़ कर
कभी फूलों से कभी काँटों से कभी सजता जिन्दगी उसमें
कभी द्वेष कभी घृणा को कभी खुदा की बन्दगी उसमें
कौन है ऐसा जो कर पाये धरती पर ये बतलायें
कितने कितने रूप से सजते कवियों के ये कवितायें।
कंचन प्रभा
रा0मध्य विद्यालय गौसाघाट, दरभंगा