टहनियों पत्तियों से ओस है टपक रही, कुहासे से पटा हुआ, खेत-वन-बाग हैं। तन को गलाता तेज पछुआ पवन बहे, ठंड से ठिठुरा हुआ, पिल्ला और काग है। तन पे…
Category: छंद
मनहरण घनाक्षरी – भावानंद सिंह
बीत गया जो समय, वह पुराना साल था, मिलकर हों स्वागत, आया नववर्ष है। चारों ओर खुशी छायी, ढोल-नगाड़े संग हैं, नाच रहे मिलकर, आज़ धरा हर्ष है। गर हो…
दोहावली- रामकिशोर पाठक
तन-मन-धन अर्पित करे, रखकर स्वच्छ विचार। पाठक नित करते रहे, जन-जन का उपकार।। वाणी ऐसी बोलिए, करें नहीं हलकान। घाव हृदय को दे नहीं, बनकर एक कृपाण।। दीप जले…
मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
घटाएँ गरजती हैं, बिजली चमकती हैं, सारा जग दिखता है, दूधिया प्रकाश में। रात में अंधेरा होता, बादलों का डेरा होता, चकाचौंध कर देती, दामिनी आकाश में। कोई होता लाख…
मनहरण घनाक्षरी- देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
निपुण का भाव भर, पहुँच प्रदान कर, बुनियादी ज्ञान से ही, बच्चों को जगाइए। संख्या की समझ लाएँ, प्रतिपुष्टि गुण पाएँ, लेखन की सौम्यता भी, सतत बढ़ाइए। संक्रिया गणित नित्य,…
मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
विद्यार्थी जो जीवन में करते न मेहनत, सदा पग-पग पर, भोगें खामियाजा हैं। दुनिया में कई लोग कर्ज में हैं डूबे हुए, जीने का तरीका देख, लगे महाराज हैं। संतति…
दोहावली- देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
मन में सोच-विचार कर, करिए नव संकल्प। जीवन में सद्भावना, कभी नहीं हो अल्प। दान-पुण्य की भावना, हो जीवन का मर्म। कष्ट मिटाकर दीन का, करिए सुंदर कर्म।। भरें…
दोहावली – देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
रखें शिष्य के शीश पर, गुरु आशिष का हाथ। तिमिर सर्वदा दूर हों, पथ आलोकित साथ।। विद्यालय है ज्ञान का, परम सुघर भंडार। छात्र सदा पाते यहाँ, एक नया संसार।।…
छठ- महिमा – रत्ना प्रिया
सुर संस्कृत में छठ-महिमा, सब मुक्त कंठ से गाते हैं। तब सविता के प्रखर प्राण को, आत्मसात् कर पाते हैं।। शुचि, आहार-विहार नीति का, पालन इसमें होता है, फिर…
दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
पर्व दिवाली ज्योति का, करता तम का अंत। खुशियाँ बाँटें मिल सभी, कहते सब मुनि संत। कहती दीपों की अवलि, दूर करें अँधियार। दुख दीनों का दूर कर, लाएँ नव…