भगवान विश्वकर्मा- अमरनाथ त्रिवेदी

सजी धजी यह धरा सुहानी , कितनी  प्यारी   लगती  है। विश्वकर्मा जी की कृपा मात्र से , यह  छटा  निराली  लगती   है।। अभियंता का काम जगत में, यह  अभियंता  ही …

श्रीकृष्ण जन्म- गिरीन्द्र मोहन झा

शूरसेन के पुत्र थे महामना वसुदेव, शरीर से थे वे मानव, गुणों से वे देव, उनकी पहली आदरणीया भार्या रोहिणी, थी वह पतिपरायणा, थी धर्मचारिणी, सत्यनिष्ठ, कर्त्तव्यपरायण थे कंस के…

जग का पालनहार कन्हैया – दीपा वर्मा

धीरे आते माखनचोर, खाते माखन, मटकी फोड़। खुश हो आती, मैया दौड़, घबराती, बैंया मरोड़। छुप के आँसू भी बहाए, क्यों लल्ला, मेरे हाथों पिटाए। माखन ही तो, खाया है,…

पालक रक्षक प्रभु श्रीकृष्ण- अमरनाथ त्रिवेदी

तुम गीता के उपदेशक जग में, तुम नंद के राज दुलारे हो। तुम द्वारकाधीश बने प्रभु , तुम वसुदेव पुत्र प्यारे हो।। जितने तुम माँ देवकी के प्यारे , यशोदा…

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

सिर घुँघराले लट, तन पीतांबर पट, बहुत है नटखट, साँवरा साँवरिया। मंत्र मुक्त होता कवि, जाता बलिहारी रवि, मन को लुभाती छवि, होंठों पे बाँसुरिया। जाता पनघट पर, ग्वाल-बाल मिलकर,…