हाँ गर्व है मुझे गर्व है यहाँ के मौसम पर पछुआ-पुरवाई हवाओं पर पर्वत-पहाड़ों, मरुभूमि-मैदानों पर नदी, तालाब, सागर व झीलों पर। गर्व है घाटी के केसर और रेशमी धागों…
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मैं प्रकृति हूँ- संदीप कुमार
मैं प्रकृति हूँ मैं प्रकृति हूँ! इंसान मैं तुझे क्या नहीं देती हूँ सबकुछ समर्पित करती हूँ तेरे लिए फिर भी तुम मेरे संग बुरा बर्ताव करते हो क्यों आखिर…
जरा रुक-कुमकुम कुमारी
जरा रुक जरा रुक ऐ मनुष्य किसलिए यूं दौड़ लगाते हो । क्षणिक सुख पाने के लिए, क्यों अपना सर्वस्व गवाते हो। इसलिए ऐ मनुष्य जरा रुक………. जरा रुक विश्राम…
कलम-अवनीश कुमार
कलम मैं जिसके हाथ बस जाऊँ उसके मैं भाग्य बनाऊँ। मैं हूँ बड़ी अनोखी चीज़ संशय इसमे करे न कोई लोग मुझे कई नामों से जानते कोई मुझे कलम, कोई…
मेरा बचपन-रीना कुमारी
मेरा बचपन बचपन के दिन भी क्या दिन थे। ऐसे अनुपम और अनुठे वो दिन थे। बचपन के दिन भी क्या दिन थे। दादा-दादी मम्मी-पापा के क्या प्यार मिले थे,…
हौसलों की उड़ान अभी बाकी है-नूतन कुमारी
हौसलों की उड़ान अभी बाकी है सारी बाधाएँ को पार कर, सफलता की परचम मैं लहराऊँ, जो नहीं हुआ सदियों तक, चाहत है कुछ ऐसा कर जाऊँ, मिलना वो मुकाम…
कैसे-प्रभात रमण
कैसे माँ भारती के दिव्य रूप को मैं दिवास्वप्न समझूँ कैसे ? इसके परम पूण्य प्रताप को मैं भला भूलूँ कैसे ? वीरों के शोणित धार को कैसे मैं नीर…
मैं शिक्षक हूँ-स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
मैं शिक्षक हूँ मैनें तो सूरज चाँद रचा, इस जीवन का सम्मान रचा, नव अंकुर नव कोपलों में, रच बस कर जीवन मान रचा। खुद जलकर तपकर सींच रहा, खुद…
कुदरत-प्रीति कुमारी
कुदरत कुदरत तेरे रंग हजार, इस जीवन रूपी नैया का, है तू ही खेवनहार। कुदरत तेरे रंग हजार। कभी तू देता ढेरों खुशियाँ, कभी दु:खों के पहाड़, और कभी तू…
निर्वाण-मनोज कुमार दुबे
निर्वाण हे मातृभूमि वसुधा धरा वसुंधरा। अर्पित है तेरे चरण रज लोहित मेरा।। तू विभवशालिनी विश्वपालिनी दुःखहर्त्री है। भय निवारिणी शांतिकारिणी सुखकर्त्री है।। निर्मल तेरा नीर अमृत सा उत्तम। शीतल…