जीवन पथ-गौतम भारती

 

जीवन पथ

पता नहीं हम किसके बल से,
जीवन जीते जाते हैं ।
डगर डगर पर रोड़ा पत्थर,
फिर भी दौर लगाते हैं।।
चंद दिनों का जीवन सबका
फिर मायूसी किस बात की,
जीवन जीना खुशी मनाते
है नफरत कौन बिसात की?
बंधकर हमसब प्रेम के बंधन 2
भार खुशी के उठाते हैं।
पता नहीं हम किसके बल से
जीवन जीते जाते हैं।।
अथक परिश्रम करता मानव
नहीं थकता नहीं थिरता है।
झुकने पर भी चलता जाता
कहाँ खौफ किसी का है?
जीवन मरण है सत्य यहाँ का
सब झूठी शान बढ़ाते हैं।
होनी, अनहोनी कब होती
ये काल यवन बताते हैं।।
पता नहीं हम किसके बल से
जीवन जीते जाते हैं।।
डगर डगर पर रोड़ा पत्थर
फिर भी दौड़ लगाते हैं।
आगे बढ़ना, बढ़ते रहना,
जीवन पथ पर चलते रहना।
हो द्वेष मुक्त मंजिल को पाना।
काँटें हैं, फूल भी हैं
और राहें ये मगरुर भी हैं।
हमे पता है फिर भी चलना 2
चलकर, कर्तव्य निभाते हैं।
पता नहीं हम किसके बल से
जीवन जीते जाते हैं।
डगमग-2अस्तित्व है करता
उनका जिनकी आश है।
मृतलोक के पवित्र धरा पर
वही जो खासम खास है।
राह दिखाता सबको मालिक,
हम वही तो पथ अपनाते हैं।
डगर डगर पर रोड़ा पत्थर,
फिर भी दौड़ लगाते हैं।।
फिर भी दौड़ लगाते हैं।

गौतम भारती
उ. म. वि. हिंगवा मुशहरी
भरगामा, अररिया
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