सर्दी – कहमुकरी
स्पर्श सदा कंपित है करती।
रोम-रोम में सिहरन भरती।।
जैसे वह हमसे बेदर्दी।
क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०१।।
कभी डरूँ तो छुप मैं जाऊँ।
दिन-भर जमकर चाय पिलाऊँ।।
पहने रहूँ सदा ही वर्दी।
क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०२।।
घर में कैदी बनकर रहती।
प्रेम मुदित मैं सब कुछ सहती।।
होने दे न कभी बेपर्दी।
क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०३।।
खाती पीती सजकर रहती।
खातिरदारी जमकर करती।।
डरकर रहती ज्यों नामर्दी।
क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०४।।
घर में रहकर करूँ हिफाजत।
दूर भागकर तजती आफत।।
दिखलाए हर-पल हमदर्दी।
क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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