गर्मी की रात ।
भली – भली सी लगती मुझको ,
ये गर्मी की रात ।
छत के ऊपर हल्का – फुल्का
करके रोज़ बिछौना ।
बड़ा मज़ा देता गर्मी भर
खुली हवा में सोना ।।
फिर क्या कहना अगर कहीं हो,
दादी माँ का साथ ।
भली – भली सी लगती मुझको ,
ये गर्मी की रात ।
चंदा के किरणों के रथ पर
शीतलता का आना,
यहाँ – वहाँ हर तरफ चमकती
चाँदी का मुस्काना ।
आसमान के ऊपर निकले,
तारों की बारात ।
भली – भली सी लगती मुझको,
ये गर्मी की रात ।
तेज़ धूप के कारण दिन में,
होना पड़ता कैद ।
बाहर निकलो, लू लगने को,
खड़ी हुई मुस्तैद ।।
बहुत रात तक जुड़े मंडली,
चलती रहती बात ।
भली – भली सी लगती मुझको,
ये गर्मी की रात ।।
आशीष अम्बर
शिक्षक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय धनुषी
प्रखंड – केवटी
जिला – दरभंगा
बिहार
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