रीढ़ देश की हैं मजदूर।
नेह सुधा सुख दें भरपूर।।
नित्य बहाते श्रम का स्वेद।
मन में कभी न रखते भेद।।
चाहे पथ हो या खलिहान।
रखते हैं वे श्रम का ध्यान।।
मिले इन्हें जब शुभ परिवेश।
करे प्रगति तब कोई देश।।
मिले पूर्ण इनको अधिकार।
सही नींव करते तैयार।।
मिलते जब इनको सम्मान।
खिलती अधरों पर मुस्कान।।
कार्य सदा देता सम्मान।
ललक कराती है पहचान।।
पाते उचित न श्रम का दाम।
करिए मन इनका अभिराम।।
वंदनीय हैं ये मजदूर।
करें नहीं इनको मजबूर।।
चलते हैं जो नंगे पाँव।
मिले उन्हें भी शीतल छाँव।।
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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