विधा – दोहा
पिता व्योम के तुल्य हैं
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पिता व्योम के तुल्य हैं, पिता सृष्टि विस्तार।
जीवन दाता हैं पिता, विटप छाँव भंडार।।
नयन सितारे हैं पिता, श्रेष्ठ सुघड़ करतार।
अपने बच्चों में सदा, भरते शुचि संस्कार।।
पिता बिना लगता सदा, यह सूना संसार।
ये तो पालनहार हैं, यही जीवनाधार।।
कलुषित कर्मों से कभी , करें नहीं अपमान।
इनके नित आशीष से, होता अभ्युत्थान ।।
पिता सृष्टि का मूल है, पिता सुगंधित फूल।
ईश धरा पर हैं पिता, हम चरणों की धूल।।
पिता एक उम्मीद है, पिता शांति सुखसार।
पिता सदा इस विश्व में, संतति का आधार।।
पिता विटप की छाँव है, देता शिशु आराम।
रोटी कपड़ा गेह भी, सुखद सृष्टि आयाम।।
पिता शांति का दूत है, पिता सृष्टि आधार।
पिता सदन की शान है, करते बेड़ा पार।।
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार