मेरा शहर दरभंगा – कंचन प्रभा

Kanchan

ये शहर था जो कभी ख्वाबों का

विशाल महलों के नवाबो का

कैसी आज ये घनघोर घटा है

धरा पर उतरी काली छटा है

आज ये पुुुरा पानी पानी क्यों है

बाढ़ की यहाँ रवानी क्यों है

शहर बन बन गया ये सैलाब का

ये शहर था जो कभी ख्वाबों का

एक बार जो खाये यहाँ केे मखान

पथिक ना भूले यहाँ के पान

कितने लोग यहाँ के कवि हुये

कोई चाँद कोई यहाँ रवि हुये

सुन्दर रचना और जवाबों का

ये शहर था जो कभी ख्वाबों का ,

कभी कोयल की मधुुुर कूक में

कभी पपिहों की विरह हूक में

धरती पूनम की चाँदनी सेे धुल्ती

झील में जब वो चकोर से मिलती

किसी पंछी के मासूम सवालों का

ये शहर था जो कभी ख्वाबों का

भ्रमण को यहाँ पर्यटक थे आते

मंदिरों में गूँजते जगराते

कितना मोहक नजारा पुराना

अब बन गया वो गुजरा जमाना

आज गढ़ हुआ ये बबालों का

ये शहर था जो कभी ख्वाबों का

कंचन प्रभा
विद्यालय- रा0मध्य विद्यालय गौसाघाट,सदर, दरभंगा

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