है बेबस धरती – एस.के.पूनम

मनहरण घनाक्षरी बहती है कलकल, सोचती है हरपल, सूखे नहीं नीर कभी,यही दुआ करती। तट पर आशियाना, साधु-संतों का ठिकाना, होता यशोगान हरि,वेदना को हरती । गर्भ में जहान पले,…

वन गमन – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

वन गमन (तंत्री छंद) जनक दुलारी, हे सुकुमारी, कैसे तुम,वन को जाओगी। पंथ कटीले,अहि जहरीले, कैसे तुम,रैन बिताओगी।। सुन प्रिय सीते, हे मनमीते, आप वहाँ,रह ना पाओगी। विटप सघन है,दुलभ…

अदृश्य सत्ता- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद अखिल ब्रह्मांड बीच, कोई तो है सार्वभौम, जिसके इशारे बिना, पत्ता नहीं हिलता। धरती खनिज देती, सीप बीच मिले मोती, कोमल सुन्दर फूल, काँटों बीच खिलता। चैन…