जिए जा रहा हूॅं- गजल  राम किशोर पाठक

Ram Kishore Pathak

 

१२२-१२२-१२२-१२२

उदासी छुपाकर जिए जा रहा हूँ।
तभी तो लबों को सिए जा रहा हूँ।।

निगाहें जिन्हें ढूँढती है हमेशा
उन्हें बेनजर अब किए जा रहा हूँ।।

उधारी चुकाना जिसे था हमारा।
उसी को अभी तक दिए जा रहा हूँ।।

कभी शौक मेरा रहा संग रहना।
मगर गम अकेले पिए जा रहा हूँ।।

जमाना किसी को समझता नहीं है।
समझ आज अपनी लिए जा रहा हूँ।

नहीं पास आना गँवारा जिसे है।
उसी के लिए मैं मुए जा रहा हूँ।।

लिखा गीत मैंने कभी प्रीत का था।
उसी को लबों से छुए जा रहा हूँ।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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