छूआछूत कोई नहीं छोटा बड़ा, सबको समान गढ़ा, आमिर-गरीब होना, तो मात्र संजोग है। ईश्वर की रचना में- विविध प्रकार जीव, तुलसी के सभी दल, का होता प्रयोग है। ऊंँच-नीच…
विदाई -रामकिशोर पाठक
विदाई – महा-शिववदना छंद गीत नम आँखों में है, प्यार भरा कैसा। छलक रहा मोती, सागर के जैसा।। पल सुंदर आया, हर्ष लिए सब है। द्रवित सभी काया, धन्य हुआ…
ऊंचाई भी क्या चीज-गिरिंद्र मोहन झा
ऊंचाई भी क्या चीज होती है, आकाश की ऊंचाई से देखो, धरती पर के शिला-गिरि छोटे दिखाई देते हैं, धरती पर से देखो तो तारे छोटे दिखाई देते हैं, ऊंचाई…
बचपन-गिरीन्द्र मोहन झा
खेलना, मस्ती करना, बड़े-बड़े ख्वाब देखना, पढ़ाई करना, जिज्ञासु प्रवृत्ति का हो जाना, बड़े-बड़े सपने देखना, पर धरातल से सदा जुड़े रहना, समय पर पढ़ाई-लिखाई करना, सहयोग भावना रखना, अच्छी…
कान्हा..रामकिशोर पाठक
कहमुकरी ख्वाब सजाकर रखती हूॅं नित।उन्हें छुपाकर रखती हूॅं चित।।रहती फिर भी जग में तन्हा।क्या सखि? साजन! न सखी! कन्हा।।०१।। याद उन्हें ही कर मैं खोयी।चरणों में सिर रखकर सोयी।।करे…
वाह रे इंसान.. जैनेंद्र प्रसाद रवि
वाह रे इंसान *****************धन-दौलत सब माल-खजाना यहीं धरा रह जाएगा,खाली हाथ तू आया बंदे खाली हाथ ही जाएगा।मूर्ति की पूजा करता है माता-पिता से प्यार नहीं, पद-पैसा पा इतराता है…
तन्हा तन्हा..राम किशोर पाठक
कुण्डलिया तन्हा-तन्हा है आज-कल, यहाँ सकल संसार।कारण इसका क्या भला, करिए जरा विचार।।करिए जरा विचार, कभी खुद को भी झाँके।बना बहाना काम, नहीं औरों को ताके।।होते सभी समान, नहीं कोई…
संस्कार-गिरीन्द्र मोहन झा
कहता हूं, व्यक्ति अपने संस्कार का ही होता है गुलाम, सुसंस्कारवश अच्छा काम करता, कुसंस्कार से बुरा काम, अच्छा संस्कार सत्कर्मों, सद्विचारों के चिंतन से ही बनता है, कुकृत्यों, बुरे…
गौरव..रामकिशोर पाठक
नाभा छंद २११-१११, २२२-२२ गौरव क्षणिक, पाना क्यों चाहें।कौन बरबस, फैलाता बाहें।।चाहत अगर, मैला हो तेरा।अंतस गरल, फैलाए डेरा।। सुंदर सृजन, होते हैं ज्यों ही।वंदन नमन, पाते हैं त्यों ही।।भक्ति…
सर्दी का मौसम… आसिफ़ इक़बाल
देखो ठंडी हवा चली,गाँव-शहर के गली गली।सर्दी का मौसम है आया,प्रकृति का संदेशा लाया। दृढ न रहो, अटल न रहो,रहो न एक जैसा हर बार।तुम भी खुद को बदलो ऐसे,मौसम…