आभूषण -रामपाल प्रसाद सिंह

मनहरण घनाक्षरी आभूषण कंदरा गुफाओं बीच,नारी रही नर खींच, कल्पना में डूबा नर ,नारी को सजाने में। पत्थरों को घिसकर,भावना से प्रेमभर, पहला ही आभूषण,आया था जमाने में। बना प्यार…

आभूषण -जैनेन्द्र प्रसाद रवि

आभूषण मनहरण घनाक्षरी छंद सदियों से मानव को, लुभाता है चकाचौंध, नर-नारी सभी को ही, आभूषण भाता है। सभी धनवान लोग, करते हैं खरीदारी, जान से भी ज्यादा प्यारा, जैसे…

श्यामला सवारियां -जैनेंद्र प्रसाद रवि

श्यामला सांवरिया एक दिन श्यामा प्यारी, साथ में सहेली सारी, पानी भरने को गई, गोकुल नगरिया। पहले तो घबराई, फिर थोड़ी सकुचाई, पकड़ लिया जो हाथ , सांवला सांवरिया। हार…

मुझको कान्हा आज बनाओ -राम किशोर पाठक

अम्मा कुछ मुझको बतलाओ। मुझको कान्हा आज बनाओ। जो चाहूँ वह दे दो मुझको। ऐसे कभी नहीं तड़पाओ।। मैं भी मुरली बजा सकूँगा। मुरली तो मुझको दिलवाओ।। साँपों का फन…

ग्रामीण परिवेश-जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

सुबह सवेरे जाग,  कबूतर और काग,  धूप सेकने को बैठी, पक्षियांँ मुंडेर पर। फसलें खेतों से जब  किसानों के घर आए, पड़ते नजर झूमे, अनाजों के ढेर पर। काम से…